Dargah: तीन युद्धों की याद ताजा करने वाली पानीपत की धरती के गर्भ में कई ऐसे किस्से समाए हुए हैं, जिन से लोग आज भी अनजान है, चाहे काला अंब हो या फिर पानीपत का म्यूजियम अभी भी काफी लोगों को इस बारे में जानकारी नही है खासकर युवा पीढ़ी को। पानीपत के उग्राखेड़ी स्थत काले अंब की बात की जाए तो इसके स्थान पर काला अंब के नाम से स्तंभ बनाया गया है। जो इतिहास का गवाह है।
इस स्तंभ पर बने पत्थर पर लिखा गया है कि यह लड़ाई इसी स्तंभ की जगह पर सन 1526, सन 1556 और सन 1761 में लड़ी गई। जिसमें मुगलों की तरफ से अहमदशाह अब्दाली व मराठों की तरफ से सदाशिवराव भाऊ के बीच भयंकर युद्ध हुआ था इस काले अंब को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है। वही पानीपत के कलंदर बाजार के बीच में बनी बू अली शाह कलंदर की दरगाह को देश विदेशों के लोगों के लिए भी आस्था का प्रतीक है.
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पूरी दुनिया में हुए ढाई कलंदर
पूरी दुनिया में सिर्फ ढाई दरगाह हैं जिनमें लोगों की आस्था है। पहली पानीपत में बू अली शाह की, दूसरी पाकिस्तान में और तीसरी इराक के बसरा में। बसरा की दरगाह आदि दरगाह का दर्जा दिया गया है चूंकि बसरा की दरगाह महिला सूफी की है, इस्लाम में हजरत अली को मानने वाले हर व्यक्ति का सपना होता है कि इन दरगाह पर जाकर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
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बू-अली शाह कलंदर के जन्म को लेकर मान्यता है कि 1190 ई. में कलंदर शाह का जन्म हुआ और 122 साल की उम्र में 1312 ई. में उनका इंतकाल हो गया। कलंदर शाह का जन्म पानीपत में ही हुआ था।
उनका नाम शरफुद्दीन था। उनके माता-पिता इराक के रहने वाले थे इनकी तालीम पानीपत से ही हुई और करीब साढे 700 साल पहले दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में एक जज के तौर पर भी रहे। कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के महान संत और विद्वान थे। इनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।कलंदर शाह के जन्मस्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ, जबकि कई लोग अजरबैजान बताते हैं. ज्यादातर लोगों के मुताबिक, पानीपत ही उनकी जन्मस्थली है. कलंदर शाह (Dargah) की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पानीपत में हुई. कुछ दिन बाद वे दिल्ली चले गए और कुतुबमीनार के पास रहने लगे.उनके ज्ञान को देखते हुए किसी संत के कहने पर उन्होंने खुदा की इबादत शुरू की।
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लगातार 36 साल की तपस्या के बाद उन्हें अली की बू प्राप्त हुई थी। तभी के उनका नाम शरफुदीन बु अली शाह कलंदर हो गया। कहा जाता है कि मरने से पूर्व उन्होंने कहा था कि उन्हें मरणोपरांत पानीपत की धरती में ही दफनाया जाए। लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि बू अली शाह की दरगाह करीब 700 साल पुरानी दरगाह है।
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Dargah: मुराद पुरी हो, इसके लिए लगाए जाते हैं ताले
लोगों के दिलों में बू अली शाह की दरगाह की मान्यता अजमेर शरीफ व हजरत निजामुद्दीन के समान है। यहां बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने आते हैं और दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते है.
ताला लगाने के साथ-साथ लोग एक संदेश की तरह अपने मन की मुराद एक कागज पर लिख कर दरगाह से चले जाते हैं और जब लोगों द्वारा मांगी गई मन की मुराद पूरी हो जाती है तो वह फिर बु अली शाह की दरगाह पर आते हैं।
अपनी हैसियत के अनुसार गरीबों को खाना खिलाते और दान-पुण्य करते हैं। यहां बड़ी तादाद में रोज लोग आते हैं, लेकिन बृहस्पतिवार को अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ती है। सालाना उर्स मुबारक पर यहां खास जलसा होता है. उर्स के मौके पर खास तौर पर दुनियाभर से बु अली शाह के अनुयायी आते हैं। इस दरगाह के मुख्य दरवाजे की दाहिनी तरफ प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपत की कब्र भी मौजूद है।
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दरगाह को सजाने के लिए लगाए जिन्नातों ने पत्थर
ऐसी भी मान्यता है कि पानीपत स्थित बु अली शाह की दरगाह पर लगाए गए पत्थर जिन्नातों द्वारा लगाए गए हैं जो नायाब पत्थर आज भी यहां मौजूद हैं। यहां लगाए गए पत्थर ना केवल मौसम बताने वाले पत्थर हैं बल्कि सोने की जांच करने वाले कसौटी पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर भी हैं। जहर मोहरा पत्थर के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई विषैला सांप या कोई भी विषैला जीव इंसान को काट ले तो यह पत्थर सारा जहर इंसान के जिस्म से चूस लेते हैं।
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Dargah: कैसे पहुंच सकते है आप
अगर आप पानीपत की बू अली शाह की दरगाह पर आना चाहते है तो दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल, जम्मु एडं कश्मीर से ट्रेन के माध्यम से पानीपत आ सकते है रेलवे स्टेशन से आटो या ई रिक्शा लेकर पहुंचसकते है। दिल्ली से अपनी गाड़ी में आने वाले यात्री पानीपत से पहले सिवाह गांव से सर्विस रोड पानीपत में प्रवेश करे और पुराने बस स्टैंड के साथ लगती सड़क से होते हुए कलंदर बाजार में आ सकते है।
पंजाब, चंड़ीगढ़, हिमाचल, जम्मु और कश्मीर अपनी गाड़ी में आने वाले यात्री पानीपत से पहले आने वाले टो प्लाजा से सर्विस रोड पर आए और पुराने बस स्टैंड के साथ लगती सड़क से होते हुए कलंदर (Dargah) बाजार में आए यूपी से अपनी गाड़ी में आने वाले यात्री सनोली रोड से अंबाला की रोड सर्विस लेन से आए और पुराने बस स्टैंड के साथ लगती सड़क से कलंदर बाजार में आए और दरगाह पर माथा टेके।