BJP In Uttar Pradesh: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा झटका दिया है। 2019 के मुकाबले भगवा पार्टी को 29 सीटों का नुकसान हुआ है। इस बार सिर्फ 33 सीटें ही मिली हैं। यहां की राजनीति में जातिगत समीकरणों का ढांचा मजबूत होता जा रहा है। चुनाव नतीजों पर गौर करें तो इस बार सभी पार्टियों में सवर्ण सांसदों की संख्या घटी है। पिछड़ों का दबदबा बढ़ा है। सबसे ज्यादा 34 सांसद ओबीसी वर्ग से चुने गए हैं। इसके बाद एससी वर्ग से 18 सांसद जीते हैं। ब्राह्मण समुदाय से 11 और क्षत्रिय वर्ग से 7 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।
पांच मुस्लिम सांसद भी चुने गए हैं
इसके बाद तीन वैश्य और दो भूमिहार वर्ग के नेता सांसद चुने गए हैं। इस तरह अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों के मुकाबले ब्राह्मण और क्षत्रिय सांसदों का प्रतिनिधित्व कम हुआ है। लखीमपुर खीरी से लेकर बस्ती तक अवध की 16 सीटों पर कुर्मी जाति सबसे ज्यादा है। कुर्मी के अलावा अन्य पिछड़ी जातियां भी हैं, जो पार्टियों को फायदा पहुंचाती रहती हैं।
BJP In Uttar Pradesh: पश्चिमी यूपी में चला जाट और गूजर का जादू
भाजपा और सपा समेत सभी राजनीतिक दल पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के सहारे पूर्वांचल और अवध की ज्यादातर सीटों पर जीतते रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और गूजर नेताओं का जादू खूब चला। जिन सीटों पर कभी ऊंची जातियां जीतती थीं, वहां अब पिछड़ी जातियों का दबदबा है।
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BJP In Uttar Pradesh: पूर्वांचल में कभी ठाकुर-ब्राह्मणों का बोलबाला था
पूर्वांचल में कभी ठाकुरों और ब्राह्मणों का बोलबाला था। पूर्वांचल की राजनीति उच्च जाति
के नेताओं जैसे कमलापति त्रिपाठी, कल्पनाथ राय, हरिशंकर तिवारी, अमरमणि त्रिपाठी, रमापति
राम त्रिपाठी, कलराज मिश्र, मनोज सिन्हा, मोहन सिंह, शिव प्रताप शुक्ला, माता प्रसाद पांडेय, हर्षवर्धन
सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, राम मनोहर लोहिया … चंद्रशेखर, शिव प्रताप शाही, वीर बहादुर
सिंह, ब्रह्माशंकर त्रिपाठी, वीरेंद्र प्रताप शाही। पूर्वांचल का कोई भी जिला ऐसा नहीं था जहां ठाकुर, ब्राह्मण
या भूमिहार नेता का दबदबा न हो, लेकिन नब्बे के दशक के बाद दलित और पिछड़े उभरे और अपना पूर्ण
प्रभुत्व स्थापित करने में सफल रहे।