Holi of Shahjahanpur: देश के अलग-अलग हिस्सों में होली का त्योहार अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. आपने ब्रज की लठ्ठमार होली और मथुरा की फूलों वाली होली के बारे में सब जानते है, वही हरियाणा के इसराना की डॉट होली के साथ जहां रंगों के बजाय जूतों से होली खेली जाती है.
जी हां, भारत का एक ऐसा राज्य है जहां होली रंगों से नहीं, बल्कि जूते मारकर खेलते हैं जिसकी वजह से यह चर्चा में बनी रहती है. कहां खेली जाती है ये जूतामार होली के बारे में.
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बरसों पुरानी है परंपरा
शाहजहांपुर में जूतामार होली की यह परंपरा बरसों पुरानी है. 18वीं सदी में शाहजहांपुर में नवाब का जुलूस निकालकर होली मनाने की प्रथा शुरू हुई थी
जो समय के साथ-साथ जूतामार होली में बदल गई. 1947 के बाद से इस होली को जूते मारकर खेला जाने लगा. होली के दिन शाहजहांपुर में ‘लाट साहब’ का जुलूस भी निकलता है.
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Holi of Shahjahanpur: यू शुरू हुई जूतामार होली
यूपी का शाहजहांपुर शहर नवाब बहादुर खान द्वारा बसाया गया था. जानकारों के मुताबिक इस वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान आपसी झगड़ों की वजह से फर्रुखाबाद चले गए थे. अब्दुल्ला खान हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच लोकप्रिय थे. 1729 में वह वापस शाहजहांपुर लौटे. उस वक्त उनकी उम्र 21 साल थी. उनकी वापसी के बाद जब पहली होली आई, तो दोनों समुदायों के लोग उनसे मिलने के लिए महल के बाहर खड़े हो गए.
जब नवाब साहब बाहर आए तब उन लोगों ने होली खेली. होली के जश्न में लोगों ने नवाब को ऊंट पर बिठाकर शहर घुमाया. इसके बाद से ही यह शाहजहांपुर की होली का हिस्सा बन गया. साल 1858 में बरेली के सैन्य शासक खान बहादुर खान के सैन्य कमांडर मरदान अली खान ने हिंदुओं पर हमला करवा दिया, जिससे शहर में सांप्रदायिक तनाव हो गया. हमला करवाने में अंग्रेज भी शामिल थे.
शाहजहांपुर की होली में ना सिर्फ जूते मारे जाते
लोगों में अंग्रेजों को लेकर बहुत गुस्सा था इसलिए देश की आजादी के बाद लोगों ने नवाब साहब का नाम बदलकर ‘लाट साहब’ कर दिया और जुलूस ऊंट की जगह भैंसा गाड़ी पर निकाला जाने लगा. तब से लाट साहब को जूता मारने की परंपरा शुरू हो गई. यह परंपरा अंग्रेजों के प्रति गुस्सा जाहिर करने का तरीका था.
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Holi of Shahjahanpur: बल्कि मथुरा के बछगांव में होली के दिन
शाहजहांपुर की होली में ना सिर्फ जूते मारे जाते हैं, बल्कि यहां व्यक्ति को लाट साहब बना कर भैंसे पर बिठाया जाता है. इसके बाद सभी लोग भैंसे को जूतों से मारते हैं. कुछ लोग जूतों के साथ-साथ चप्पल और झाड़ू आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है. सिर्फ जूतामार होली ही नहीं, बल्कि मथुरा के बछगांव में होली के दिन चप्पल मारकर होली मनाई जाती है. यह परंपरा सालों से चलती आ रही है जिसके पीछे की अलग-अलग वजह बताई जाती है