Katasraj: पाकिस्तान में कटासराज (Katasraj) शिवमंदिर में शिवरात्रि मनाने के लिए श्रद्धालुओं का जत्था बॉर्डर के रास्ते भारत से रवाना हो चुका है। चकवाल स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि ये 5000 साल पुराना है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव के आंसू गिरे थे।
Katasraj: कटासराज मंदिर को लगभग 5000 साल पुराना बताया गया
पाकिस्तान भले ही 1947 में भारत से हटकर एक अलग देश बन गया लेकिन आज भी भारत की कई ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरें वहां मौजूद हैं। ऐसी ही एक धरोहर पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में स्थित कटासराज धाम मंदिर है। मान्यता है कि भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर 5000 साल पुराना है। महाभारत काल से जुड़े इस मंदिर में हर साल सैकड़ों भारतीय हिंदू श्रद्धालु दर्शन करने के लिए जाते हैं। बुधवार को 112 हिंदू श्रद्धालुओं का जत्था शिवरात्रि के मौके पर कटासराज मंदिर (Katasraj) में पूजा करने के लिए पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ।
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केंद्रीय सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष शिव प्रताप बजाज ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि 112 श्रद्धालु जा रहे और भी श्रद्धालु जाना चाहते थे लेकिन पाकिस्तान उच्चायोग ने वीजा नहीं दिया। बजाज ने कहा कि यात्रा का मुख्य उद्येश्य कटासराज के पवित्र कुंड में डुबकी लगाना है, लेकिन इसके सूखने के चलते ये असंभव सा लग रहा है। इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तान में हिंदू धार्मिक स्थलों का सही से रखरखाव न होने पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा, हमारी बार-बार मांग के बाद भी श्रद्धालुओं के लिए रूम नहीं बने। साथ ही मंदिर में स्थायी पुजारी की नियुक्ति भी नहीं की गई है।
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यहां गिरे थे भगवान शिव के आंसू
हिंदू धर्म में कटासराज मंदिर का बहुत ही महत्व है। इस मंदिर आंगन में एक तालाब है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये भगवान शिव के आंसुओं से बना हुआ है। कटास का अर्थ आंखों में आंसू होता है। कथा है कि जब सती की मृत्यु हो गई तो उनके विछोह में भगवान शिव इतना रोए कि दो कुंड भर गए। इनमें एक कुंड राजस्थान के पुष्कर में है, जबकि दूसरा कटासराज में स्थित है। कटासराज में अधिकतर मंदिर भगवान शिव को समर्पित करके बनाए गए हैं। हालांकि, यहाँ कुछ मंदिर अलग अलग भगवानो के भी हैं। आंगन में एक गुरुद्वारे के भी कण हैं, जहां गुरुनानक ने निवास भी किया था।
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Katasraj: पांडव भी यहाँ आए थे
एक अन्य मान्यता के अनुसार, 12 वर्ष के वनवास के दौरान पांडव भी यहां पहुंचे थे और इसी तालाब के किनारे युधिष्ठिर और यक्ष के बीच संवाद हुआ था। किवंदती ने बताया, वन में भटकते हुए पांडवों को प्यास लगी तो उनमें से एक तालाब के पास आया तालाब में मौजूद यक्ष ने जल लेने के लिए पांडवों से उसके सवालों का जवाब देने को कहा। जवाब न देने पर उसने एक-एक को मूर्छित कर दिया। अंत में जब युधिष्ठिर पहुंचे तो उन्होंने यक्ष के सवालों का जवाब दिया जिससे प्रसन्न होकर यक्ष ने सभी पांडवों की चेतना अवस्था में वापस कर दिया और जल पीने की अनुमति दी। यह ही यक्ष-युधिष्ठिर संवाद के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
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ऐतिहासिक महत्व है मंदिर का
वर्तमान में मौजूद मंदिर का निर्माण छठी और 9वीं शताब्दी के बीच किया गया था। मंदिर परिसर में बौद्ध स्तूप और हवेलियां भी शामिल हैं। मंदिर की शिल्पकला में कश्मीरी झलक दिखाई दे रही है। मंदिर को चौकोर आकार में बनाया गया है। और इसकी छत शिखर से नुकीली है। इसमें सबसे बड़ा मंदिर भगवान राम का है। इसकी की दीवार पर बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है।