Mahabharata: महाभारत में राजा कर्ण का नाम सुनते ही पूरी दुनिया के मन में केवल महाभारता कुरूक्षेत्र का नाम याद आता है लेकिन नही उनसे भी ज्यादा महत्व दानवीर कर्ण के लिए करनाल का है जहां राजा कर्ण सुबह चार मंदिरों में पूजा कर सवा मन सोना दान करते थे। आईए जानते है कौन कौन सी जगह है वो…
कर्ण नगरी के वो चार मंदिर आज भी आस्था के केंद्र
कर्ण नगरी के वो चार मंदिर आज भी आस्था के केंद्र है जहां दानवीर कर्ण हर रोज सुबह स्नान और पूजा करने के बाद सवा मन सोना दान करते थे।
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सुबह सबसे पहले कर्ण ताल में स्नान कर झारखंडी शिव मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक कर सवा मन सोना दान करते थे। उसके बाद लक्कड़ मंडी काली माता मंदिर, फिर माता मनसा देवी मंदिर इसके बाद मां सरस्वती के दर्शन करते थे जो अब अग्रवाल धर्मशाला में है।
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Mahabharata: झांरखंडी मंदिर में स्थापित शिवलिंग
झांरखंडी मंदिर में स्थापित शिवलिंग करनाल का सबसे प्राचीन शिविलिंग माना जाता है। मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयं धरती से उत्पन्न हुआ है। कर्ण ताल में अष्टधातु की बनी दानीवर कर्ण की विशाल प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है। झारखंडी मंदिर के महंत सीता राम गिरी ने बताया कि मंदिर का नाम झारखंडी पड़ने का कारण बताया कि कर्ण ताल के चारों और घाट थे और झाडियां बहुत थी.
दूसरी कुल्हाड़ी मारी तो दूध निकला
एक दिन यहां कोई लकड़ी काटने वाला उसने पहली कुल्हाड़ी मारी तो खून निकला और दूसरी कुल्हाड़ी मारी तो दूध निकला तब सभी ने उसे झांडी काटने से मना कर दिया सफाइ की तो यहां शिवलिंग मिला इसके साथ ही मंदिर का नाम झारखंडी मंदिर रखा गया।
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इस प्राचीन मंदिर में उनकी दस पीढ़ी सेवा कर रही है। जिसमें जमुना गिरी,निति गिरी, मनसा गिरी,महंत बारू गिरी की समाधी भी इसी मंदिर प्रांगण में बनी हुई है। महंत सीता गरी जी स्वंय अब सेवा कर रहे है।