New Delhi News Hindi: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सुसाइड नोट में नाम लिख देने और उन्हें मौत के लिए जिम्मेदार ठहरा देने मात्र से कोई व्यक्ति आईपीसी के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध का दोषी नहीं हो जाता। हाल ही में न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने एक फैसले में कहा कि सुसाइड नोट में कुछ लोगों के नाम लिखकर यह बताना कि वे उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हैं, वास्तव में आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने या आईपीसी की धारा 306 के तहत उसे दोषी ठहराने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।
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आदेश को पलटने के लिए
विशेष न्यायाधीश के फैसले और आदेश को पलटने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अपीलीय अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ याचिकाकर्ताओं के विरोध को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ चुनौती को खारिज कर दिया था।
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New Delhi News Hindi: किस मामले में हाईकोर्ट ने टिप्पणी की?
तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ता की बहू 9 मार्च 2014 को अपने ससुराल से अपने माता-पिता के पास रहने चली गई। 23 मार्च 2014 को याचिकाकर्ता के बेटे ने शिकायत दर्ज कराई कि उसकी पत्नी आभूषण समेत अपना सारा सामान लेकर चली गई है।
31 मई 2014 को याचिकाकर्ता के पति (ससुर) ने आत्महत्या कर ली। सास की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि बहू और उसके माता-पिता द्वारा परेशान किए जाने के कारण उसके पति ने आत्महत्या की।
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New Delhi News: जांच रिपोर्ट में क्या खुलासा हुआ?
जांच के बाद, एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें सुसाइड नोट को छोड़कर आरोपी को अपराध से
जोड़ने वाला कोई ठोस सबूत नहीं मिला। इस रिपोर्ट के खिलाफ सास की विरोध याचिका को
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया, जिसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने बरकरार रखा। इसलिए
वर्तमान याचिका दायर की गई। अदालत ने कहा कि मुख्य मुद्दा यह है कि क्या मृतक को आत्महत्या के
लिए उकसाना आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय है। उकसावे को स्थापित करने के लिए
अभियुक्त की कार्रवाई और आत्महत्या के बीच एक कारण संबंध होना चाहिए।