Tulsidas Ramcharit Manas: तुलसीदास की रामचरित मानस के बालकांड में भगवान राम के बाल स्वरूप का वर्णन है। उसमें राम के श्याम वर्ण, मुस्कान और शरीर के बाकी अंगों की सुंदर व्याख्या की गई है।
अयोध्या के राम मंदिर में लगाए गए कृष्णशिला से बनी श्रीरामलला की मूर्ति बहुत हद तक वैसी ही है।
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रामचरित मानस के बालकांड की वो 5 चौपाइयां और रामलला की मूर्ति की बनावट…
हिंदू पंचांग का प्रारंभ चैत्र मास से होता है, इसी महीने के शुक्ल पक्ष में नवमी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में दोपहर के समय अयोध्या के महाराजा दशरथ की सबसे बड़ी पत्नी कौशल्या को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इस अवसर पर आकाश से देवताओं ने अपनी प्रसन्नता का प्रकटीकरण पुष्पवर्षा कर किया,
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संतों ने भी इस अवसर पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की तो प्रकृति भी अपनी खुशी को नहीं छिपा सकी, बड़े-बड़े पर्वत मणियों से जगमगाने लगे और नदियों में जल के स्थान पर अमृत की धारा बहने लगी, जंगलों में पेड़ों ने नए पत्ते निकल आए.
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Ramcharit Manas: रामचरित मानस में है चित्रण
अयोध्या धाम के भव्य, दिव्य और नव्य मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है. भगवान श्री राम के जन्म के समय का चित्रण गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में बहुत ही सुंदर पंक्तियों में किया है.
- भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
- हरषित महतारी मुनिमन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।
- लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
- भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।।
- कह दुई कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता।।
गोस्वामी जी प्रभु श्री राम के जन्म का वर्णन करते हुए लिखते हैं, दीनों पर दया करने वाले कौसल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए हैं. मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार कर मां कौसल्या का हृदय हर्ष से भर गया, नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर और चारो भुजाओं में विभिन्न प्रकार के शस्त्र धारण किए गले में आभूषण और वरमाला पहने हैं
जिनके बड़े बड़े नेत्र हैं. शोभा के समुद्र और खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रगट हुए हैं. उनकी मां स्वयं ही दोनों हाथ जोड़ कर कहने लगी, हे अनंत, मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करें क्योंकि वेद और पुराण तुमको माया गुण और ज्ञान से परे बताते हैं. माता कौसल्या उनका विशाल रूप देख कर दंग रह गयी और फिर हाथ जोड़ कर फिर से बोलीं …
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माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।।