Shivratri: भोले बाबा के दर्शन करने के लिए जहां नीलकंठ, उज्जैन, अमरनाथ,कांशी विश्वनाथ, सोमनाथ मंदिर में पूजा करने के लिए जाते है वहीं बांसवाड़ा जिले के लाखों श्रद्धालुओं के लिए पूरे साल में भगवान भोले नाथ के केवल चार महीने ही दर्शन होते हैं और फिर अंतर्ध्यान हो जाते हैं.
शायद ये आपकों मजाक लगे, लेकिन ये बात बिल्कुल सही है. हम बता दे कि बांसवाड़ा जिले के माही और अनास नदी के संगम स्थल पर 200 साल पुराना महादेव का चमत्कारिक मंदिर बना है. साल में यह सात से आठ महीने यह मंदिर पानी डूब जाता हैं।
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हर वर्ष ये स्थल 4 फीट पानी में ही डूब जाता
इस मंदिर के दर्शन न होने कारण इसका पानी में डूब जाना है. हर वर्ष ये स्थल 4 फीट पानी में ही डूब जाता है, वहीं श्रद्धालु नाव पर ही मंदिर के दर्शन करने पहुंच जाते हैं. विश्वास करने वाली ये बात है कि इतना समय पानी में रहने के बावजूद भी ये मंदिर में जो का तो है.
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श्रद्धालु (Shivratri) इसे चमत्कार मानते है और इसे ईश्वरीय शक्ति मानते है. मंदिर में पानी भरने का कारण गुजरात के कडाना बांध में पानी की आवक होने है जिससे मंदिर केवल चार माह ही दिखाई देता है।
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Shivratri: संगमेश्वर महादेव मंदिर जुलाई-अगस्त के महीने में डूब जाता है
संगमेश्वर महादेव के नाम से प्राचीन मंदिर राजस्थान में बांसवाड़ा से 70 किमी दूर भैंसाऊ गांव में माही और अनास नदी के संगम स्थल पर बना हुआ है और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. हर वर्ष संगमेश्वर महादेव मंदिर जुलाई-अगस्त के महीने में डूब जाता है और फिर फरवरी व मार्च में जल भराव कम होने पर मंदिर दिखाई देता है. वही ईट-पत्थर और चूने से बना ये मंदिर दो सौ साल पुराना है.
श्रद्धालु पैदल जाकर भगवान शिव के मंदिर में जाकर करते हैं दर्शन
ये सूर्यमुखी शिव मंदिर पिछले 50 साल से पानी में डूबा रहने के कारण न सिर्फ मजबूती से खड़ा है वही वर्ष दर वर्ष सुंदर दिख रहा है. गर्मी पड़ने के साथ ही जब बांध का पानी उतरने लगता है, तब श्रद्धालु पैदल जाकर भगवान शिव के मंदिर में जाकर दर्शन करते हैं. वही ये नदियों के संगम स्थल पर स्थित होने के कारण मंदिर का नाम संगमेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया.
वही मंदिर करीब 200 साल पहले बांसवाड़ा जिले अंतर्गत गढ़ी के राव हिम्मतसिंह (परमार राजवंश) ने निर्माण करवाया था. उस वक्त यह मंदिर पानी से घिरा हुआ भी नहीं था. वर्ष 1970 में गुजरात ने अपनी सीमा में कड़ाणा बांध का निर्माण किया और फिर यह मंदिर आठ महीने के लिए डूबने लगा.